আধুনিক হিন্দি কবিতার জগতে এ সময়ের উল্লেখযোগ্য একজন কবি হূবনাথ পান্ডের কবিতার অনুবাদ।
হূবনাথ পান্ডে : ১৯৬৫ সালের ১৩ এপ্রিল বেনারসে কবি হূবনাথ পান্ডের জন্ম। সামাজিক বৈষম্য, রাজনীতিকদের নীতিহীনতা, জাতপাত প্রভৃতি তাঁর কবিতায় উঠে আসে বারবার। সরাসরি ভণিতাহীন উচ্চারণ তাঁর। চর্চিত তিনি, বহুচর্চিত তাঁর কবিতা। 'মিট্টী', 'লোয়ার প্যারল', 'অকাল' প্রমুখ তাঁর উল্লেখযোগ্য কয়েকটি কাব্যগ্রন্থ। কবি বর্তমানে মুম্বাই বিশ্ববিদ্যালয়ের হিন্দি বিভাগের অধ্যাপক। এখানে 'মিট্টী' কাব্যগ্রন্থের কয়েকটি বাছাই কবিতার অনুবাদ মাত্র।
मिट्टी
हूवनाथ पाण्डये
१.
मिट्टी को छुओ
तो ऐसे
जैसा छुता है फूल
खुशबू को
जैसा छुती है किरण
रौशनी को
जैसे छुती है हवा
शीतलता को
छुता है जल
तरलता को
मिट्टी ऐसे ही छुती है
मिट्टी को
१.
मिट्टी को छुओ
तो ऐसे
जैसा छुता है फूल
खुशबू को
जैसा छुती है किरण
रौशनी को
जैसे छुती है हवा
शीतलता को
छुता है जल
तरलता को
मिट्टी ऐसे ही छुती है
मिट्टी को
১.
মাটিকে সেভাবেই ছোঁও
যেভাবে সুগন্ধ ছোঁয় ফুল।
যেভাবে আলো-কে ছোঁয় কিরণ
শীতলতাকে ছোঁয় হাওয়া
আর তরলতাকে জল।
মাটি
এভাবেই ঠিক ছুঁয়ে থাকে মাটিকে।
२.
मिट्टी को तो
न अग्नि जला सकती है
न जल गला सकता है
न वायु सुखा सकती है
अग्नि, वायु, जल
मिट्टी से मिलते है
तो प्रारंभ होता है
सृजन
जैसे
मनुष्य पुराने वस्त्र
त्याग कर
नए वस्त्र
धारण करता है
वैसे ही
मिट्टी धारण करती है
वनस्पति, पशु, पक्षी
मानव रूपी देह
भेद सिर्फ रूप काम है
सच तो
सिर्फ मिट्टी है
২.
আগুন যেমন জ্বালাতে পারে না
মাটিকে,
গলাতেও পারে না জল,
কিংবা শুকোতে পারে না বায়ু
মাটিতে এসে মেশে যখন
অগ্নি, জল, বায়ু
শুরু হয় তখনই
সৃজন।
পুরনোকে ত্যাগ করে যেভাবে মানুষ
ধারণ করে নতুন বস্ত্র,
মাটিও ধারণ করে সেভাবেই
বনস্পতি, পশু, পক্ষী
মানব রূপী দেহ --
রূপেরই যা তফাৎ
সত্য শুধু মাটি।
हड़प्पा में मिली है
मिट्टी की
एक नारी प्रतिमा
जिसने पहने हैं
मिट्टी के गहने
पांच हजार साल पहले के
इंसान
जानते थे
नारी हो या गहने
अन्तत: होते है
मिट्टी
৩.
হড়প্পায় পাওয়া গেছিল
এক মাটির নারী মূর্তি --
পরনে মাটির গয়না।
পাঁচ হাজার বছর আগেও
মানুষ জানতো
শেষ অবধি মাটিই --
নারীই হোক অথবা গয়না।
४.
आवां में
मिट्टी जलती नही
ढलती है
एक नए रूप में
पाती है
एक नए रंग
अग्नि
देता है आकार
मिट्टी को
৪.
ভাঁটির আগুনে মাটি
জ্বলে না, শুধু
বদলে পায় নতুন রূপ,
নতুন আর এক রং
রূপ ও রঙের আকার
মাটিকে দেয় অগ্নি বরং।
कई रंग की होती है
मिट्टी
लाल, काली, पीली, सफेद
इंसानों के भी होते है
इतने ही रंग
रंग तो
सिर्फ यह बताते है
कि
सच तो सिर्फ मिट्टी है
रंग तो सिर्फ रंग है
৫.
মাটির অনেক রং
লাল, কালো, হলদে, সাদা
মানুষেরও রং এতগুলি
রং শুধু এ কথাই বলে --
সত্য যা, তা শুধু মাটি।
আর রং --
শুধুই রং।
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